झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के वरिष्ठ नेता सुदिव्य कुमार अब राज्य सरकार में मंत्री बन गए हैं। दिशोम गुरु शिबू सोरेन और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के करीबी माने जाने वाले सुदिव्य का राजनीतिक सफर मेहनत, संघर्ष और प्रतिबद्धता का प्रतीक रहा है। उन्होंने झामुमो में एक साधारण कार्यकर्ता के रूप में शुरुआत की थी और आज वे पार्टी के प्रमुख चेहरों में गिने जाते हैं। संगठन को खड़ा करने में उन्होंने हर स्तर पर मेहनत की—चाहे दीवार लेखन हो, पोस्टर लगाना हो या पार्टी का झंडा लेकर गांव-गांव घूमना।
1989 में रखी राजनीति की नींव
शंभूनाथ विश्वकर्मा के पुत्र सुदिव्य कुमार उर्फ सोनू ने 1989 में झामुमो की सदस्यता लेकर राजनीति में कदम रखा। शुरूआत में वे एक सामान्य कार्यकर्ता की भूमिका में रहे, लेकिन संगठनात्मक कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगे। उन्होंने झारखंड अलग राज्य आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की और गांव-गांव जाकर लोगों को पार्टी की नीतियों और आंदोलनों की जानकारी दी।
नगर कमेटी के पहले अध्यक्ष
पार्टी के प्रति उनकी निष्ठा और मेहनत को देखते हुए 1992 में उन्हें गिरिडीह नगर कमेटी का संस्थापक अध्यक्ष बनाया गया। इस पद पर रहते हुए उन्होंने युवाओं को पार्टी से जोड़ने और आंदोलन को धार देने का काम किया। 2003 में पार्टी ने उन्हें गिरिडीह जिला अध्यक्ष नियुक्त किया, जहाँ उन्होंने 2010 तक संगठन को गांव से शहर तक विस्तार देने का महत्वपूर्ण कार्य किया।
चुनावी संघर्ष: हार से जीत तक
सुदिव्य ने 2009 में पहली बार गिरिडीह विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा। उस समय वे छठे स्थान पर रहे। लेकिन 2014 में जब पार्टी ने दोबारा उन्हें उम्मीदवार बनाया, तो उन्होंने प्रदर्शन में बड़ी छलांग लगाई और भाजपा के अनुभवी नेता निर्भय कुमार शाहाबादी के खिलाफ दूसरे स्थान पर आए।
2019 में तीसरी बार झामुमो ने उन पर भरोसा जताया और इस बार सुदिव्य ने इतिहास रच दिया—उन्होंने भाजपा के गढ़ माने जाने वाले इस क्षेत्र में जीत दर्ज की। 2024 के चुनाव में उन्होंने अपनी जीत को दोहराया और निर्भय शाहाबादी को एक बार फिर शिकस्त दी।
1991 का गोड्डा चुनाव: संगठन के लिए समर्पण
सुदिव्य के संघर्ष की कहानी सिर्फ विधानसभा तक सीमित नहीं रही। 1991 के लोकसभा चुनाव के दौरान उन्हें गोड्डा भेजा गया, जहां उन्होंने पार्टी प्रत्याशी सूरज मंडल के लिए प्रचार किया। इस दौरान पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या की घटना घटी और चुनाव स्थगित हो गया, लेकिन सुदिव्य वहां डटे रहे। वे पूरे 45 दिन गोड्डा में संगठन के लिए सक्रिय रहे और मतदान से ऐन पहले वापस लौटे।
मेहनत का फल
सुदिव्य कुमार का यह सफर इस बात का उदाहरण है कि सच्ची मेहनत, संघर्ष और निष्ठा से राजनीति में कैसे ऊंचाई हासिल की जा सकती है। साधारण कार्यकर्ता से मंत्री बनने तक का उनका सफर झामुमो कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
पूरा नाम | सुदिव्य कुमार |
राजनीतिक पार्टी | झारखंड मुक्ति मोर्चा |
विधानसभा सदस्य | गिरिडीह |
कैबिनेट मंत्री | शहर विकास एवं आवास मंत्री, उच्च एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री, पर्यटन मंत्री |
पिता | शंभू नाथ |
NOTE: यह लेख विभिन्न इंटरनेट स्रोतों (जैसे Wikipedia और शोध लेख) के आधार पर तैयार किया गया है।